मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत | Psychoanalytic Theory – Sigmund Freud
मनोविश्लेषण सिगमंड फ्रायड ने आरंभ किया और जुंग तथा एडलर ने विकसित किया। यह विधि व्यक्तित्व के विकास में बचपन के अनुभवों पर बल देती है। इसकी सहायता से हम अचेतन मन (Unconscious Mind) को जान लेते हैं। इसकी सहायता से हम मन के विचारों अथवा व्यक्तित्व के दोषों को जान सकते हैं। मनोविश्लेषण विधि द्वारा हम व्यक्ति के मन (Mind) व्यक्तित्व और उसकी धारणा (Point of View) के बारे में अध्ययन करते हैं। इन्होंने अपने सिद्धांत में चेतना की महानता को परिभाषित किया है।
सिगमंड फ्रायड ने मन की तुलना बर्फ के तैरते हुए पहाड़ (Ice Berg) से की है जिसका 9/10 भाग पानी के अंदर तथा 1/10 भाग पानी के बाहर रहता है। बर्फ का पहाड़ पानी की सतह पर तैरता रहता है जिसका 1/10 भाग पानी के ऊपर तैरता रहता है। इनके अनुसार जो हिस्सा पानी के अंदर रहता है वह भाग अचेतन मन (Unconscious Mind) कहलाता है तथा जो हिस्सा पानी के बाहर रहता है वह भाग चेतन मन (Conscious Mind) कहलाता है तथा पानी के ऊपरी सतह से स्पर्श करने वाला भाग अर्धचेतन मन (Subconscious / Preconscious Mind) कहलाता है।
यह तीन भागों में बांटा हुआ है-
1. व्यक्तित्व का गत्यात्मक सिद्धांत
व्यक्ति के अंदर तीन प्रकार की मानसिक क्रियाएं होती है।
अचेतन (Unonscious)
- वह घटनाएं अथवा सूचनाएं जो हमें पूर्ण रूप से भूल चुकी है यह हमारी मानसिक प्रक्रिया का 90% है।
- हमारे अचेतन में ज्यादातर असामाजिक और अनैतिक घटनाएं होती है।
अर्ध चेतन (Subconscious)
- यह चेतन व अचेतन मन के बीच की अवस्था है।
- अर्ध चेतन मन की जानकारी ने तो तात्कालिक चेतना में होती है और ना ही अचेतन में परंतु अगर व्यक्ति प्रयास करें तो इस भाग के विचार व भाव आदि को चेतन में लाया जा सकता है।
- वे घटनाएं जो कुछ प्रयासों के बाद स्मरण हो जाती है।
चेतन (Conscious)
- यह तत्काल जानकारी से संबंधित होता है।
- इसमें वर्तमान की घटनाओं की स्मृति चिन्ह होते हैं जिसके कारण इनका आसानी से पुनः स्मरण करा जा सकता है।
- यह मन का वह भाग है जो वास्तविकताओं के द्वारा व्यक्तिगत नैतिक सांस्कृतिक व सामाजिक आदर्शों का अनुसरण करता है।
- वे घटनाएं वे सूचनाएं जो हमेशा याद रहती है।
- व्यक्ति का व्यक्तित्व अचेतन से प्रभावित होता है।
2. व्यक्तित्व का संरचनात्मक सिद्धांत
ID इदम्
- इदम् एक जन्मजात प्रवृत्ति है।
- इदम् के अंतर्गत शारीरिक आवश्यकताएं आती हैं।
- इदम् सामाजिक मान्यताओं और नैतिक मूल्यों की परवाह किए बिना इच्छाओं की तृप्ति पर बल देता है।
- यह अचेतन में काम करता है।
- इसमें पाशविक इच्छा Animal Feelings होती है।
- सुख, लाभ, लक्ष्य, तुरंत प्राप्त करना चाहता है वह भी बिना किसी बाधा के।
- स्वार्थी स्वभाव का होता है।
Ego अहम
- यह वास्तविक जगत में काम करता है।
- यह Id or Superego के बीच संतुलन बनाता रहता है।
परमअहम Super Ego
- परमअहम नैतिक सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों का विकास करता है।
- इसमें व्यक्ति आदर्शों के अनुरूप चलता है ताकि वह कोई गलत काम ना कर सके।
- यह भी अचेतन में काम करता है।
- परिवार, समाज, और देश के लिए बलिदान के लिए तैयार रहता है।
अच्छा व्यक्तित्व मजबूत अहम पर निर्भर करता है। व्यक्ति का व्यक्तित्व चिंता से प्रभावित होता है।
चिंता Anxiety
सिगमंड फ्रायड के अनुसार हम हमेशा सुखद वस्तुओं की तरफ भागते हैं जबकि दुखद परिस्थितियों से पीछा छुड़ाते हैं। अतः दुखद परिस्थितियों से दुश्चिंता या चिंता बढ़ जाती है। यह तीन प्रकार की होती है –
वास्तविक चिंता Actual Anxiety
दुर्घटना, आपदा, बीमारी से संबंधित चिंता को वास्तविक चिंता कहते हैं।
तंत्रिका गत चिंता Neurotic Anxiety
ID and Ego के संतुलन की चिंता, व्यक्ति को चिंता होती है कि कहीं अहम के कमजोर होने पर अनैतिक या असामाजिक कार्य ना हो जाए।
नैतिक चिंता Moral Anxiety
Ego and Superego के संतुलन की चिंता ,व्यक्ति को चिंता होती है कि अहम कमजोर होने पर समाज में लज्जित ना होना पड़े।
किसी भी प्रकार की चिंता व्यक्तित्व के विकास के लिए अच्छी नहीं होती अतः हमें चिंता को दूर करने के लिए उपाय या प्रयास करने चाहिए।
चिंता को दूर करने के लिए अहम का मजबूत होना आवश्यक है। हम को मजबूत बनाने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया को रक्षात्मक प्रक्रिया या रक्षात्मक प्रक्रम Defensive Mechanism कहते हैं।
यह निम्नलिखित विधियों से अपनाया जाता है –
- दमन Repression – चिंता का पूरी तरह से भूल जाना दमन कहलाता है।
- प्रतिगमन Regression – चिंता की मूल स्थिति से एक कदम पीछे हट जाना।
- विस्थापन Displacement – चिंता को उसी रूप में दूसरों को विस्थापित स्थानांतरण करना।
- उद्दादांतीकरण Sublimation – चिंता के मूल स्थिति से हटकर कहीं और व्यस्त हो जाना।
- तार्किकरण Rationalization – तर्क वितर्क के द्वारा चिंता को दूर करना।
- प्रक्षेपण Projection – चिंता के मूल स्थिति / कारक के लिए दूसरों को दोषी ठहराना।
3. व्यक्तित्व का मनो लैंगिक सिद्धांत ( Psychosexual Theory )
सिगमंड फ्रायड के अनुसार मनुष्य में जन्म से ही यौन ऊर्जा होती है जिसे libido कहां जाता है। इस ऊर्जा के कारण व्यक्ति जन्म से मृत्यु तक अपनी यौन ऊर्जा की पूर्ति करना चाहता है। व्यक्ति अलग-अलग अवस्थाओं में अलग अलग तरीके से यौन ऊर्जा की पूर्ति करता है।
मुखा अवस्था Oral Stage 0 to 2 years
इस अवस्था में बच्चों के यौन इच्छा का प्रमुख केंद्र मुख होता है। बच्चे वस्तुओं को काटकर, चूस कर, निगल कर अपनी यौन सुख को प्राप्त करता है।
गुदा अवस्था Anal Stage 2 to 3 years
इस अवस्था में बच्चे की यौन इच्छा का प्रमुख केंद्र गुदा होता है। शौच क्रिया को कर कर बच्चा यौन सुख प्राप्त करता है।
शैशनावस्था Phallic Stage 3 to 6 years
इस अवस्था में बच्चे की यौन इच्छा का प्रमुख केंद्र लिंग होता है। बच्चे में लड़के या लड़की होने का आभास इसी अवस्था में होता है। लड़कों के अंदर माता के प्रति झुकाव होता है जिसे Oedipus Complex कहते हैं। लड़की के अंदर अपने पिता के प्रति झुकाव होता है जिसे Electra Complex कहते हैं ।
अव्यक्त अवस्था Latency Stage 6 to 12 years
इस अवस्था में बच्चे के अंदर यौन इच्छा पूरी तरह से शांत हो जाती है। बच्चा यौन ऊर्जा का प्रयोग खेल, पढ़ाई, संगीत आदि क्षेत्रों में करता है।
जननेंद्रिय अवस्था Genital Stage 12 to above years
इस अवस्था में बच्चे शारीरिक रूप से परिपक्व होने लगते हैं। शारीरिक संबंधों द्वारा शारीरिक यौन सुख प्राप्त कर सकते हैं।